प्राइवेट नौकरी पर चंद पंक्ति

प्राइवेट नौकरी करने चला है बंधु,
सोच के की खूब कमायेगा पैसा,
रोब होगा सरकारी बाबू जैसा ,
ना मिली माया ना मिला पैसा,
जो पिताजी के राज रहते था राजा जैसा,
मंथ एन्ड आते आते वही आदमी हो गया है फकीरो जैसा !!

प्राइवेट नौकरी के लिए भी खूब करी पढ़ाई लिखाई,
बाद में पता चला ये तो है सिर्फ चप्पल घिसाई,
मेहनत कर कर के लोन की ई एम आई भर पाता है
बाकी का खर्चा उधार मांग के चलाता है !!

प्राइवेट नौकरी है एक कलयुगी दलदल,
जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी यहां से निकल,
अगर टिकना है यहां तो चाणक्य बनकर चल !!
सीधे आदमी का यहां कोई काम नही,
सीधा रहा तो तू काम करता रह जायेगा,
तेरे हिस्से की मलाई भी कोई और खा जाएगा !!

यहां चाटुकारो की जय जय कार होती है,
चाटुकार आगे बढ़ते चले जाते है
मेहनती और योग्य चप्पल घिसते रह जाते है!!
प्रमोशन के लिए चाटूकार बनाना पड़ता है,
या फिर कंपनी छोड़ना पड़ता है,

साल भर नई नई टेक्नोलॉजी सीखनी पड़ती है,
इंक्रीमेंट के नाम पर भीख मांगनी पड़ती है,
सालो की कमाई धूल बन जाती है,
जब थोड़ी भी आर्थिक स्तिथि गड़बड़ाती है !!

--कवि अंदरूनी

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